सरकार ओर सरकारी चिकिस्ता अनुसंधान जिस तरह के आंकड़े के रोज कोरोनो संक्रमितों की संख्या प्रदर्शित कर रहा है और जिस तरह से जनसंख्या के अनुपात के साथ तुलनात्मक बाजीगरी दिखाई जा रही है क्या ये सिर्फ मन को समझाने मात्र का ख्याल नही है। इस आंकड़ो की बाजीगरी से मात्र सरकार के बेहतर प्रदर्शन के लिए दूसरे देशों के साथ तुलना की जा रही है। जबकि सरकार और चिकित्सा मामलों के जानकार ये भी कह चुके है कि हमे कोरोना वॉयरस के साथ रहने की आदत डालनी होगी। परंतु टीआरपी की होड़ ओर सरकार की चाटूकारिता की होड़ में मुख्य मीडिया घराने मुख्य समस्या से ध्यान नही भटका रंहे क्या? देश अर्थव्यवस्था की तो लगभग बलि दे ही चुका है बाजार में मांग का अभाव है क्योंकि नगदी की तरलता में कमी आयी है। विपक्ष लगातार मांग कर रहा है की लोगो को नगद सहायता दो । देशवासियों में लगातार भ्रम की स्थिति बनी हुई है इस वॉयरस के प्रति। सोशल मीडिया भी कुपढो से भरी पड़ी प्रतीत होती है जानकारी का अल्पता ही प्रतीत होती है बस । सवाल ये है कि क्या भारत सरकार की इससे लड़ने की रणनीति विफल रही है। क्या व्यक्ति को अब सरकार से कोई उम्मीद न लगाते हुए अपनी सुरक्षा खुद करनी होगी। मेरा उत्तर होगा हा । देश मे लगभग 3 लाख से अधिक संक्रमित है( mohfw) के अनुसार । 9000 से अधिक जाने जा चुकी है। इन मामलों में से सबसे अधिक केस महाराष्ट्र, दिल्ली, तमिलनाडु, गुजरात मे है। संख्या लगातार बढ़ रही और चिकित्सा संसाधनो कमी साफ साफ दिखाई देने लगी है। जानकर कहते है कि जैसे जैसे जांच में तेजी आएगी संक्रमितों की संख्या में भी इजाफा होगा।एक रिपोर्ट के अनुसार भारत मे गहन चिकित्सा ( icu)के लिए लगभग 95000 बेड है जिनमे से 48000 के समीप वेंटिलेटर है। इस आंकड़े से आप अंदाजा लगा सकते है कि अगर संक्रमितों की संख्या में ओर इजाफा हुआ तो चिकित्सा सुविधा मिलना कितना दुर्भर हो जाएगा। दिल्ली और गुजरात से तो बेड देने के लिए अनावश्यक धन की मांग करने की खबरे भी लगातार आ रही है 22 मार्च को सरकार ने लॉकडाउन लगाया। देश की जनता से इसका पालन भी किया पर क्या जनता की तपस्या का फल देश को मिला ? कोरोनो संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है लगातार । अर्थव्यवस्था को जबरदस्त झटका लग चुका है करोड़ो लोग रोजगार गवा चुके है। पर सरकार ने लॉक डाउन के दौरान अपनी चिकित्सा प्रणाली को कितना मजबूत किया इसके आकंड़े या तो सरकार के पास है नही या वो सार्वजनकि नही कर पा रही है। लगातर बढ़ते मामले कही ना कही नाकामियो की तरफ इशारा कर रहे है। आम नागरिक इस बात से अनभिज्ञ है कि उसे कोरोनो से स्वयं से कैसे दूर होना है मतलब की खुद का इलाज कैसे करना है । वो तो सरकार की तरफ ही मदद की उम्मीद भरी नजरों से देखेगा ओर सरकार के पास उसे खुद ध्यान रखने के लिए कहने के अलावा कोई चारा नही होगा इसके इतर राज्यो में टेस्ट की संख्या में लगातार कमी आ रही है। यानी कि संक्रमित हमारे आसपास भी हो सकते है हमे पता ही नही चलेगा ।अब जनता को ही समझना पड़ेगा कि उसे यर लड़ाई खुद ही लड़नी है । सरकार लगभग हाथ खड़े ही कर चुकी है। क्या पहले से ही रोजगार , व्यापार से हाथ धो चुकी जनता को आने वाली इस भयावह स्थिति का सामना करना पड़ सकता है कि जब उसे अपेक्षित इलाज भी नही मिलेगा
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